Prakhar

My blogs

About me

Gender Male
Location Raipur , Gwalior, Chhattisgarh , Madhya Pradesh, India
Introduction श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितातI स्वभावनियंत कर्म कुर्वन्नाप्रोती किल्बिषम II४७II शब्दार्थ:- " अच्छी तरह अनुष्ठान किये हुए "परधर्म" से "अपना धर्म" श्रेष्ठ है चाहे वो गुणरहित ही क्यों न हो. कारण कि स्वाभिमान से किये हुए स्वधर्म-रूप कर्म को करता हुआ मनुष्य पाप को प्राप्त नहीं होता. " परिशिष्ट भाव :- " स्वधर्मरूपकर्म को करने से पाप बन तो सकता है,पर लग नहीं सकता. पाप लगने का मुख्य कारण भाव है, क्रिया नहीं. अतः पाप कर्मों से नहीं लगता,प्रत्युत स्वार्थ और अभिमान आने से लगता है. "