siddhartha

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Gender Male
Industry Communications or Media
Location India
Introduction लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं, हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं । ..............सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
Interests कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिये न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिये जियें तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिये...........दुष्यंत कुमार
Favorite Movies बीस साल बाद मेरे चेहरे में वे आँखें लौट आयी हैं जिनसे मैंने पहली बार जंगल देखा है : हरे रंग का एक ठोस सैलाब जिसमें सभी पेड़ डूब गए हैं। और जहाँ हर चेतावनी ख़तरे को टालने के बाद एक हरी आँख बन कर रह गयी है। बीस साल बाद मैं अपने-आप से एक सवाल करता हूँ जानवर बनने के लिए कितने सब्र की ज़रूरत होती है? और बिना किसी उत्तर के चुपचाप आगे बढ़ जाता हूँ क्योंकि आजकल मौसम का मिज़ाज यूँ है कि खून में उड़ने वाली पंक्तियों का पीछा करना लगभग बेमानी है। दोपहर हो चुकी है हर तरफ़ ताले लटक रहे हैं दीवारों से चिपके गोली के छर्रों और सड़कों पर बिखरे जूतों की भाषा में एक दुर्घटना लिखी गई है हवा से फड़फड़ाते हिन्दुस्तान के नक़्शे पर गाय ने गोबर कर दिया है। मगर यह वक़्त घबराये हुए लोगों की शर्म आँकने का नहीं और न यह पूछने का – कि संत और सिपाही में देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य कौन है! आह! वापस लौटकर छूटे हुए जूतों में पैर डालने का वक़्त यह नहीं है बीस साल बाद और इस शरीर में सुनसान गलियों से चोरों की तरह गुज़रते हुए अपने-आप से सवाल करता हूँ – क्या आज़ादी सिर्फ़ तीन थके हुए रंगों का नाम है जिन्हें एक पहिया ढोता है या इसका कोई खास मतलब होता है? और बिना किसी उत्तर के आगे बढ़ जाता हूँ चुपचाप।..............धूमिल
Favorite Music इब्नबतूता पहन के जूता निकल पड़े तूफान में थोड़ी हवा नाक में घुस गई घुस गई थोड़ी कान में कभी नाक को, कभी कान को मलते इब्नबतूता इसी बीच में निकल पड़ा उनके पैरों का जूता उड़ते उड़ते जूता उनका जा पहुँचा जापान में इब्नबतूता खड़े रह गये मोची की दुकान में।..............सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
Favorite Books समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई हाथी से आई घोड़ा से आई अँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद... नोटवा से आई बोटवा से आई बिड़ला के घर में समाई, समाजवाद... गाँधी से आई आँधी से आई टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद... काँगरेस से आई जनता से आई झंडा से बदली हो आई, समाजवाद... डालर से आई रूबल से आई देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद... वादा से आई लबादा से आई जनता के कुरसी बनाई, समाजवाद... लाठी से आई गोली से आई लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद... महंगी ले आई गरीबी ले आई केतनो मजूरा कमाई, समाजवाद... छोटका का छोटहन बड़का का बड़हन बखरा बराबर लगाई, समाजवाद... परसों ले आई बरसों ले आई हरदम अकासे तकाई, समाजवाद... धीरे-धीरे आई चुपे-चुपे आई अँखियन पर परदा लगाई समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई ।.............गोरख पाण्डेय.....(रचनाकाल :1978)