सोहन

My blogs

About me

Gender Male
Industry Communications or Media
Introduction ज़िंदगी का सबसे बड़ा हिस्सा बातचीत में ही गुजर जाता है। सुबह उठने से दि‍न शुरू होता है। आंख खुलते ही खुद से बातचीत शुरू हो जाती है। फि‍र घर में बातचीत। घर से नि‍कले तो कदम कदम पर कि‍सी ना कि‍सी से कोई बात हो जाती है। सुबह से दोपहर होती है, फि‍र शाम और फि‍र रात। सारा दि‍न तो बातचीत में गुजरता ही है, रात भी सपनों की ज़ुबां में कुछ न कुछ बति‍याती ही रहती है। इस बीच जि‍स शख्स से हम सबसे ज्यादा बात करते हैं, वह होते हैं ख़ुद हम। ख़ुद को न जाने कि‍तनी बार हम उम्मीदों, सपनों और चाहतों की दुनि‍या की सैर कराते हैं, न जाने कि‍तनी बार उसे सचाइयों, फरेबों और छलावों से रूबरू कराते हैं। कि‍तनी बार ध्यान से ख़ुद को सुनते हैं और न जाने कि‍तनी बार शि‍कायतों, झुंझलाहटों और तन्हाइयों से ख़ुद को सताते हैं। कहने सुनने का यह अंतहीन सि‍लसि‍ला उम्रभर चलता है, फि‍र भी अनसुना कर दि‍ए जाने की एक अजीब सी टीस हमेशा हमसे कदमताल करती रहती है। ख़ुद से बातचीत की इसी सलिलक्वि से हम अपने आप को गढ़ते हैं, रचते हैं और ताउम्र इसी में उलझकर रह जाते हैं। मैं भी इसी भंवर में हूं, शायद आप की तरह। कभी कभार को छोड़कर कहते रहने की हसरतें अनसुना कर दि‍ए जाने के दर्द की परवाह नहीं करतीं।
Favorite Movies वज़ूद, हम दि‍ल दे चुके सनम, जब वी मेट, रंग दे बसंती, रहना है तेरे दि‍ल में, दि‍ल तो पागल है, स्वदेश, मोहब्‍बतें, मुन्नाभाई एमबीबीएस, थ्री इडि‍यट्स, वाइल यू वर स्लीपि़ग, और बहुत हैं ...
Favorite Books द हार्ट ऑफ दी मैटर्स, द वन मैन एंड द सी, यू कैन वि‍न, चेतन के चार नॉवल, सफ़र में धूप तो होगी (नि‍दा फाज़ली), बशीर बद्र- नई ग़ज़ल का एक नाम, बोज्‍यू (सुनीता जैन), कुछ और...