kewal tiwari केवल तिवारी
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Gender | Male |
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Occupation | Journalist |
Location | Chandigarh, India |
Introduction | प्रोफाइल लिखने की बात होती है समझ में नहीं आता क्या लिखूं। क्या लिखूं से याद आती है पदुमलाल पुन्नालाला बख्शी जी के लेख ‘क्या लिखूं’ की। उसमें वह असमंजस में हैं कि दो निबंध एक ही दिन में बच्चियों के लिए कैसे लिखा जाये। फिर वह जिक्र करते हैं जब एक शायर को प्यास लगी और वह झरने के पास पहुंचे। वहां मौजूद कुछ महिलाओं ने उनको पहचान लिया और अलग-अलग विषयों पर उनसे कविताएं सुनाने को कह दिया। एक ने ढोल पर सुनना चाहा, दूसरी ने खीर पर। एक ने कहा, चरखा पर कुछ सुनाइये और एक ने तो कुत्ते पर सुनाने को कह दिया। शायर और कवि महोदय बोले, अगर इतनी कविताएं सुनाई तो मेरा गला ही सूख जाएगा। उन्होंने एक ही कविता में लिख डाला, ‘खीर पकाई जतन से, चरखा दिया चलाय, आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजाय।’ खैर यह तो उन कवि की विशेषता थी कि सब समेट दिया। पदुमलाल पुन्नालाला बख्शी साहब की लेखन शैली थी कि उन्होंने क्या लिखूं पर ही निबंध लिख डाला। मैं तो सिवा संघर्षों, वह भी सिर्फ अपने लिए के अलावा कुछ लिख ही नहीं सकता। इसलिए यही कहूंगा कि 25 सालों से श्रमजीवी पत्रकार हूं। मौका लगता है तो कुछ लिख-पढ़ लेता हूं। नाम केवल तिवारी है। मूलत: उत्तराखंड का हूं। पला-बढ़ा लखनऊ में। 1996 में दिल्ली आ गया। वर्ष 2013 से चंडीगढ़ में हूं। |
Interests | किताबें पढ़ने का शौक हमेशा रहा। कुछ लिखता भी रहा हूं। |