ajaykiawaz
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Introduction | मेरे लिए पत्रकारिता पहला प्यार नहीं था, मेरी इच्छा थी कि मैं बहुत बड़ा प्रोफेसर बनूं और वो भी जेएनयू में..। मगर वहां से अपनी पढ़ाई ख़त्म करते करते ये भ्रम टूट गया। मुझे लगा कि पत्रकारिता के ज़रिए मैं देश और समाज के उन अछूते पहलुओं तक पहुंच पाऊंगा जहां आम तौर पर बंद कमरे में बैठे विद्वान और विचारक नहीं पहुंच पाते मगर उसके बारे में लंबा-चौड़ा भाषण ज़रुर देते हैं। मुझे लगा कि उन सभी चीज़ों को नज़दीक से देख पाना शायद मेरे लिए बेहतर तालीम होगी और वो सच भी हुई। हिंदुस्तान टाइम्स के सहायक संपादक के तौर पर 1980 के दशक में मैने पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखा। अब तक का फासला आज तक, बीबीसी, दूरदर्शन और एनडीटीवी के रास्ते इस मुकाम पर पहुंचा है और अब तक बदस्तूर जारी है। मैं समझता हूं कि सहाफत की एक ऐसा ज़रिया है जिसके मार्फत आप उस आदमी की नब्ज़ माप सकते हैं या उसके एहसासों को महसूस कर सकते हैं जो ये कह रहा हो कि "ग़म तो हो हद से सिवा और अश्क अफसानी न हो। उससे पूछे जिसका घर जलता हो और पानी न हो " |
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