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Introduction गीता के परम प्रचारक श्रद्धेय श्रीजयदयाल गोयन्दका 'सेठजी' का जन्म राजस्थान के चुरू में ज्येष्ठ कृष्ण ६,सम्वत् १९४२ (सन्1885) को श्रीखूबचन्द्र अग्रवाल के परिवार में हुआ था। बाल्यावस्था में ही आपको गीता तथा रामचरितमानसने प्रभावित किया। आपने गीता से प्रेरित होकर अपना जीवन धर्म-प्रचार में लगाने का संकल्प लिया। आपने कोलकाता में ‘गोविन्द-भवन’ और ऋषिकेश में ‘गीता-भवन’ की स्थापना की। आप गीता पर इतना प्रभावी प्रवचन करने लगे थे कि हजारों श्रोता मंत्र-मुग्ध होकर सत्संग का लाभ उठाते थे । जनसाधारण को गीता ग्रंथ की शुद्ध सरल भाषा में और कम से कम कीमत में प्रति उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सन् 1923 में आपने गोरखपुर में गीताप्रेस की स्थापना की। ‘गीता तत्वविवेचनी’ नाम से आपने गीता का भाष्य किया। आपके द्वारा रचित तत्व-चिन्तामणि, साधन-कल्पतरु, प्रेम भक्ति प्रकाश, मनुष्य जीवन की सफलता, परम शांति का मार्ग, ज्ञानयोग का तत्त्व, प्रेमयोग का तत्व, परम-साधन आदि पुस्तकों ने धार्मिक-साहित्य की अभिवृद्धि में अभूतपूर्व योगदान किया है। अपने व्यक्तित्व की पूजा और कर्तृत्व के महिमा प्रचार आदि से कोशों दूर रहकर एक अकिंचन निष्काम कर्मयोगी की भांति निरंतर गीता-प्रणीत ज्ञानामृत की वर्षा करते हुए श्रद्धेय सेठजी 17 अप्रैल सन् 1965 (वैषाख कृष्ण २,वि०सं० २०२२) को ऋषिकेश में गंगा के पावन तट पर परम धाम के लिए प्रस्थान किया।